19-06-2024        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - सबसे मूल सेवा है बाप की याद में रहना और दूसरों को याद दिलाना, तुम किसी को भी बाप का परिचय दे उनका कल्याण कर सकते हो''

प्रश्नः-
कौन-सी एक छोटी-सी आदत भी बहुत बड़ी अवज्ञा करा देती है? उससे बचने की युक्ति क्या है?

उत्तर:-
अगर किसी में कुछ छिपाने की वा चोरी करने की आदत है तो भी बहुत बड़ी अवज्ञा हो जाती है। कहा जाता है - कख का चोर सो लख का चोर। लोभ के वश भूख लगी तो छिपाकर बिना पूछे खा लेना, चोरी कर लेना - यह बहुत खराब आदत है। इस आदत से बचने के लिए ब्रह्मा बाप समान ट्रस्टी बनो। जो भी ऐसी आदतें हैं, वह बाप को सच-सच सुना दो।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) स्थूल सेवा के साथ-साथ सूक्ष्म और मूल सेवा भी करनी है। सबको बाप का परिचय देना, आत्माओं का कल्याण करना, याद की यात्रा में रहना यह है सच्ची सेवा। इसी सेवा में बिजी रहना है, अपना समय वेस्ट नहीं करना है।

2) सेन्सीबुल बन 5 विकारों रूपी भूतों पर विजय प्राप्त करनी है। चोरी वा झूठ बोलने की आदत निकाल देनी है। दान में दी हुई चीज़ वापस नहीं लेनी है।

वरदान:-
शरीर की व्याधियों के चिंतन से मुक्त, ज्ञान चिंतन वा स्वचिंतन करने वाले शुभचिंतक भव

एक है शरीर की व्याधि आना, एक है व्याधि में हिल जाना। व्याधि आना यह तो भावी है लेकिन श्रेष्ठ स्थिति का हिल जाना - यह बन्धनयुक्त की निशानी है। जो शरीर की व्याधि के चिंतन से मुक्त रह स्वचिंतन, ज्ञान चिंतन करते हैं वही शुभचिंतक हैं। प्रकृति का चिंतन ज्यादा करने से चिंता का रूप हो जाता है। इस बंधन से मुक्त होना इसको ही कर्मातीत स्थिति कहा जाता है।

स्लोगन:-
स्नेह की शक्ति समस्या रूपी पहाड़ को पानी जैसा हल्का बना देती है।