28-10-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - सतगुरू की
पहली-पहली श्रीमत है देही-अभिमानी बनो, देह-अभिमान छोड़ दो''
प्रश्नः-
इस समय तुम
बच्चे कोई भी इच्छा वा चाहना नहीं रख सकते हो - क्यों?
उत्तर:-
क्योंकि तुम
सब वानप्रस्थी हो। तुम जानते हो इन आंखों से जो कुछ देखते हैं वह विनाश होना है। अब
तुम्हें कुछ भी नहीं चाहिए, बिल्कुल बेगर बनना है। अगर ऐसी कोई ऊंची चीज़ पहनेंगे
तो खींचेगी, फिर देह-अभिमान में फंसते रहेंगे। इसमें ही मेहनत है। जब मेहनत कर पूरे
देही-अभिमानी बनो तब विश्व की बादशाही मिलेगी।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस बेहद नाटक में एक्ट करते हुए सारे नाटक को साक्षी होकर देखना है।
इसमें मूँझना नहीं है। इस दुनिया की कोई भी चीज़ देखते हुए बुद्धि में याद न आये।
2) अपने आसुरी स्वभाव को बदल दैवी स्वभाव धारण करना है। एक-दो का मददगार होकर
चलना है, किसी को तंग नहीं करना है।
वरदान:-
स्वयं में
सर्व शक्तियों को इमर्ज रूप में अनुभव करने वाले सर्व सिद्धि स्वरूप भव
लौकिक में किसी के पास किसी
बात की शक्ति होती है, चाहे धन की, बुद्धि की, सम्बन्ध-सम्पर्क की ... तो उसे
निश्चय रहता है कि यह क्या बड़ी बात है। वह शक्ति के आधार से सिद्धि प्राप्त कर लेते
हैं। आपके पास तो सभी शक्तियां हैं, अविनाशी धन की शक्ति सदा साथ है, बुद्धि की भी
शक्ति है तो पोजीशन की भी शक्ति है, सर्व शक्तियां आपमें हैं, इन्हें सिर्फ इमर्ज
रूप में अनुभव करो तो समय पर विधि द्वारा सिद्धि प्राप्त कर सिद्धि स्वरूप बन
जायेंगे।
स्लोगन:-
मन को
प्रभू की अमानत समझकर उसे सदा श्रेष्ठ कार्य में लगाओ।