30-10-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - एक बाप की
याद में रहना ही अव्यभिचारी याद है, इस याद से तुम्हारे पाप कट सकते हैं''
प्रश्नः-
बाप जो समझाते
हैं उसे कोई सहज मान लेते, कोई मुश्किल समझते - इसका कारण क्या है?
उत्तर:-
जिन बच्चों ने
बहुत समय भक्ति की है, आधाकल्प से पुराने भक्त हैं, वह बाप की हर बात को सहज मान
लेते हैं क्योंकि उन्हें भक्ति का फल मिलता है। जो पुराने भक्त नहीं उन्हें हर बात
समझने में मुश्किल लगता। दूसरे धर्म वाले तो इस ज्ञान को समझ भी नहीं सकते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस अनादि अविनाशी बने-बनाये ड्रामा में हरेक के पार्ट को देही-अभिमानी
बन, साक्षी होकर देखना है। अपने स्वीट होम और स्वीट राजधानी को याद करना है, इस
पुरानी दुनिया को बुद्धि से भूल जाना है।
2) माया से हारना नहीं है। याद की अग्नि से पापों का नाश कर आत्मा को पावन बनाने
का पुरूषार्थ करना है।
वरदान:-
दीपमाला पर
यथार्थ विधि से अपने दैवी पद का आह्वान करने वाले पूज्य आत्मा भव
दीपमाला पर पहले लोग
विधिपूर्वक दीपक जगाते थे, दीपक बुझे नहीं यह ध्यान रखते थे, घृत डालते थे,
विधिपूर्वक आह्वान के अभ्यास में रहते थे। अभी तो दीपक के बजाए बल्ब जगा देते हैं।
दीपमाला नहीं मनाते अब तो मनोरंजन हो गया है। आह्वान की विधि अथवा साधना समाप्त हो
गई है। स्नेह समाप्त हो सिर्फ स्वार्थ रह गया है इसलिए यथार्थ दाता रूपधारी लक्ष्मी
किसी के पास आती नहीं। लेकिन आप सभी यथार्थ विधि से अपने दैवी पद का आह्वान करते हो
इसलिए स्वयं पूज्य देवी-देवता बन जाते हो।
स्लोगन:-
सदा
बेहद की वृत्ति, दृष्टि और स्थिति हो तब विश्व कल्याण का कार्य सम्पन्न होगा।